प्रदुषण कम करने का एक बेहतरीन तरीका

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प्रदुषण कम करने का एक बेहतरीन तरीका

दिल्ली के प्रदूषण पर सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से एक नयी तकनीक पर काम करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदुषण से लड़ने के लिए गाड़ियां चलाने के लिए हाइड्रोजन सेल की तकनीक पर रिपोर्ट मांगी है जो जापान समेत दुनिया के कई मुल्को में पहले से कामयाबी से इस्तेमाल हो रही है। हाइड्रोजन सेल तकनीक से चलने वाली गाड़ियां हवा में को ज़हरीला कण नहीं छोड़ती इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी है हाइड्रोजन सेल की तकनीक पर काम शुरू किया जाये । माना जा रहा है कि दिल्ली में हो रहे प्रदुषण कि सबसे बड़ी वज़ह गाड़ियों से निकलने वाला धुआं है। दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का पूरा सिस्टम CNG से चलता है। बड़ी संख्या में निजी गाड़ियां भी CNG से चलती हैं लेकिन कोर्ट का मानना ये है कि CNG भी दिल्ली को प्रदुषण से बचने के लिए काफी नहीं है इसीलिए सुप्रीम कोर्ट अब पेट्रोल, डिसल और CNG से हटकर साफ ईंधन का कोई दूसरा विकल्प खोज रही है। कोर्ट ने सरकार से हाइड्रोजन तकनीक पर रिपोर्ट मांगी है। पेट्रोल और डीजल से चलने वाली इंजन को तकनिकी भाषा में इंटरनल कबरसम इंजन कहा जाता है जो कि डेढ़ सौ साल पुराना है लेकिन गाड़ियों कि बढाती तादात कि वजह से अब पूरी दुनिया गाड़ियां चलाने के लिए अलग अलग तकनीक पर काम कर रही हैं। हाइड्रोजन सेल तकनीक पर काम करने वाली गाड़ियों में कोई इंजन नहीं होता बल्कि एक मोटर होता है जो गाड़ी को चलाने लायक ऊर्जा पैदा करता है। ये तकनीक तकरीबन वैसी ही है जैसी इलेक्ट्रिक गाड़ियों में होती है । इलेक्ट्रिक गाड़ियों में भी इंजन कि जगह एक मोटर ले लेती है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों के एक मोटर एक बैटरी के ज़रिये चलती है जिसे हर बार चार्ज करने कि ज़रूरत पड़ती है लेकिन हायड्रोजन से सेल तकनीक से चलने वाली गाड़ियों को ताकत केवल हायड्रोजन से ही मिलती है इसके लिए एक खास तरह कि तकनीक बनायी जाती है जो हाइड्रोजन के सेल बनाती है फिर उस सेल कि ताकत का इस्तेमाल मोटर को चलाने के लिए किया जाता है। हाइड्रोजन गैस इतनी ताकतर है कि इसका दुनिया में सबसे खतरनाक बम बनाने के लिए भी किया जा रहा है। तकनीक के जानकर मानते है कि पानी से हाइड्रोजन को अलग करना तो आसान है लेकिन उसे संभालना आसान नहीं है। इसके लिए तकनीक का काफी बड़ा इंफ्रास्टक्टचर तैयार करने कि ज़रूरत पड़ेगी। तकनीक और इंफ्रास्टक्टचर पर बड़े निवेश कि ज़रूरत भी होगी। दुनिया के जिन मुल्कों में हाइड्रोजन सेल तकनीक से गाड़ियां चलाई जा रही है। वहां कई साल से जुडी तकनीक और इंफ्रास्टक्टचर को बनाने कर काम किया गया। लेकिन यही बात भारत के लिए फायदेमंद है। दुनिया के कुछ मुल्कों में हाइड्रोजन सेल तकनीक वाली गाड़ियां बना रही कंपनियां बी भारत के ऑटो मोबिल सेक्टर का हिस्सा है यानि तकनीक पहले से मौजूद है ज़रूरत है तो केवल इंफ्रास्टक्टचर तैयार करने की। भारत के लिए हाइड्रोजन सेल तकनीक इसलिए भी ज़रूरी है कि ये तकनीक हवा को ज़रा भी प्रदूषित नहीं करती । दुनिया के बाकि देशों में हाइड्रोजन सेल तकनीक पर चलने वाली गाड़ियां बाकि गाड़ियों से कई मायने में आगे है। माना जाता है कि हाइड्रोजन से चलने वाली गाड़ियां पेट्रोल और डीजल के मुकाबले ज़्यादाताकतवर होती है। हाइड्रोजन कि तकनीक से गाड़ियों कि माइलेज कहीं ज़्यादा आती है। हाइड्रोजन को कार में एक बार रिफिल करने के बाद आमतौर पर गाड़ियां चार सौ से ५०० सौ किलोमीटर तक चल जाती हैं। किसी कारण हाइड्रोजन कार को रिफिल करने में तकरीबन उतना ही वक़्त लगता है जितना वक़्त पेट्रोल या डीजल भरवाने में लगता है हालाकिं भारत में जब तक ये तकनीक शुरू नहीं होती तब तक इसके खर्च का अनुमान लगाया नहीं जा सकता लेकिन बाकि मुल्कों में हाइड्रोजन से चलने वाली गाड़ियों का खर्च पेट्रोल और डीजल से कई गुना कम है
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